देहरादून–आज स्थानीय हिंदी भवन, देहरादून में वनाधिकार आंदोलन की ओर से एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। विचार गोष्ठी का मुख्य मुद्दा हमारा पानी हमारा अधिकार था।
विचार गोष्ठी में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, सपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रो0 एस एन सचान, सीपीआई के बच्ची राम कंसवाल, जगमोहन मेहंदीरत्ता, सतीश धौलखंडी, संजय भट्ट, दीपू सकलानी, प्रेम बहुखंडी, शीला रावत, रेनु नेगी, मनोज ध्यानी, बद्री विशाल तोमर, तारा चंद गुप्ता, उदवीर पंवार, साहिल उनियाल, राजेश डबराल, किशन लाल शर्मा सहित विभिन समाज सेवियों ने अपने विचार रखे।
प्रस्ताव पारित :- उत्तराखण्ड सरकार पानी फ्री दे।
किशोर उपाध्याय ने कहा कि हिमालय क्षेत्र के निवासियों ने आदिकाल से जल जंगल जलवालु और वन्यप्राणीयों की रक्षा की है। जब पूरी दुनिया प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करके, विकास के तथाकथित मानदंडों को रौंदते हुए, आगे बढ़ रही थी, प्रवतजनों/ गिरिजनों ने उस समय भी प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करने के लिए अनेक बलिदान दिए।
हिमालय के उत्तराखंड क्षेत्र से निकलने वाली नदियां देश के 60 करोड़ लोगों की प्यास बुझा रही हैं लेकिन हिमालय और उसके निवासी आज भी प्यासे हैं। हिमालय से निकलने वाली नदियों से मिलने वाले पानी को दिल्ली और राजस्थान की सरकारें अपने नागरिकों को लगभग मुफ्त दे रहीं हैं, लेकिन हमारी सरकार हमसे इसके एवज में भारी शुल्क ले रही है। हमारा पानी उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को आसानी से उपलब्ध है लेकिन टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा में हरवर्ष पानी का संकट बना रहता है। ऐसे में उत्तराखण्ड सरकार को आम जन के लिए पानी फ्री करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम 30 मई 2018 से वनाधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। जिसमे फ्री पानी भी हमारी मुख्य मांग है।
एस एन सचान ने कहा कि वनाधिकार आंदोलन जहां एक तरफ प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की वकालत करता हैं, वहीं दूसरी तरफ मानवजाति के उपभोग/उपयोग के लिये प्राकृतिक संसाधनों के वैज्ञानिक दोहन और न्यायोचित बंटवारे की भी पुरजोर पैरवी करता है।
बच्ची राम कंसवाल ने कहा कि वनाधिकार आंदोलन का मानना है कि प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिये, इनके नजदीक रहने वाले समुदायों के श्रम, परिश्रम और बलिदान को मद्देनजर रखते हुए, इन समुदायों को पहला अधिकार दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनता को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना चाहिए। बिना संघर्ष के कुछ नहीं मिलता हैं।
प्रेम बहुखंडी ने कहा कि सरकार को उत्तराखण्ड में वनाधिकार कानून लागू करना चाहिए। जनता को उनके हक हकूकों से वंचित नहीं करना चाहिए। जनता को पानी फ्री देना चाहिए।
संजय भट्ट ने कहा कि जब उत्तराखण्ड के हरिद्वार की गंग नहर से जाने वाला पानी दिल्ली की केजरीवाल सरकार फ्री दे सकती है और राजस्थान जैसे पानी की किल्लत और सूखा ग्रस्त प्रदेश में अशोक गहलोत पानी फ्री दे सकते हैं। तो उत्तराखण्ड तो वाटर बैंक है। उत्तराखण्ड सरकार को भी जनमानस को पानी फ्री देना चाहिए।
रेनु नेगी ने कहा कि उत्तराखण्ड वाटर बैंक है लेकिन फिर भी आज पहाड़ों पर पानी की भारी किल्लत है। सरकार को चाहिए कि पहाड़ी राज्य की सोच के अनुसार पहाड़ के विकास के लिए पानी को फ्री करना चाहिए और जंगलों पर हमारे अधिकार वापस दिए जाने चाहिए।
वनाधिकार आंदोलन की विचार गोष्ठी “हमारा पानी – हमारा अधिकार” में सर्व सम्मति से फैसला लिया गया कि आंदोलन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को एक ज्ञापन प्रेषित कर उत्तराखण्ड वासियों को भी पानी फ्री देने की मांग करेगा।