जिहाद की राह पर चंद दिन के सफर ने ही आरिफ को सच्चाई से रुबरु करा दिया। अस्पताल में बिस्तर पर लेटा आरिफ अपने पास खड़े एक सुरक्षाकर्मी से कहता है, मुझसे भूल हो गई। मुझे तो तुम्हारी तरह वर्दी पहननी चाहिए थी और देश की रक्षा के लिए बंदूक उठानी चाहिए थी।
दक्षिण कश्मीर में बिजबिहाड़ा के फतेहपोरा का आरिफ हुसैन बट कहता है कि उसे और उसके एक अन्य साथी आदिल अहमद को बीती रात हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर के आतंकियों ने एक बैठक के लिए बुलाया था। अंधेरे में वह लोग मिलने पहुंचे थे। आरिफ कहता है, ‘मैं और आदिल सोच रहे थे कि शायद हिज्ब और लश्कर के लड़के हमारे गुट में शामिल होने वाले हैं।’
आरिफ को लगा था, ‘वह (हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर आतंकियों ने) हमारे साथ मिलकर भारतीय फौज पर कोई बड़ा हमला करना चाहते हैं, लेकिन मैं गलत था। हम बाग में पहुंचे तो हमें घेर लिया गया। हम पर जिहाद का दुश्मन और पाक के खिलाफ जाने का आरोप लगाया गया। हमें पीटकर हथियार छीन लिए गए। आदिल को मेरे सामने गोलियों से भून दिया गया। उन लोगों ने मुझे नहीं मारा। मुझे हिज्ब या लश्कर का हिस्सा बनने को कहा गया। जब मैं भागने लगा तो मेरी टांग पर गोली मारी और कहा कि मैं नया हूं, इसलिए मुझे छोड़ रहे हैं।’
आरिफ बताता है, ‘मैं बाग में पड़ा दर्द से कराहता रहा। डर था कि फौज मुझे नहीं छोड़ेगी। पुलिस आएगी और मुझे देखते ही गोली मार देगी। इसके विपरीत जब फौजी और कुछ आम नागरिक वहां पहुंचे तो किसी ने मुझे नहीं पीटा। फौज ने बस यही कहा कि अगर हथियार है, तो नीचे रख दो। मैंने कहा कि मुझे गोली लगी है, तो फौजी अफसर ने कहा कि बच गए हो। अब अच्छी जिंदगी जीना। हम यूं ही तुम्हे मरने नहीं देंगे। अस्पताल ले जाएंगे। तुम्हारे घर वाले भी तुम्हे देखेंगे तो खुश होंगे। माफी मांगनी होगी या तौबा करनी होगी तो उनसे करना।
आरिफ हुसैन ने कहा कि मुझे नहीं पता कि मुझे जेल होगी या नहीं। मुझे पता चल चुका है कि हमारा दुश्मन कौन है? इसलिए मैं जब भी ठीक होकर घर जाऊंगा तो सबसे पहले मैं मस्जिद में जाकर उन लोगो के खिलाफ जिहाद का एलान करुंगा जो मेरे जैसे लड़कों को गुमराह कर जिहादी बनाते हैं।