अपना पहाड़ वैसे तो सेहतमंद माना जाता है। प्रकृति प्रदत्त ताजी हवा पानी एवं पर्यावरण यहां है। बावजूद इसके पहाड़ में खतरे भी कम नही हैं।
नैनीताल, : अपना पहाड़ वैसे तो सेहतमंद माना जाता है। प्रकृति प्रदत्त ताजी हवा, पानी एवं पर्यावरण यहां है। बावजूद इसके पहाड़ में खतरे भी कम नही हैं। जिला मुख्यालयों में आबादी का बढ़ता बोझ बड़े मैदानी शहरों जैसी जीवनशैली में तब्दील होता जा रहा है। वहीं पहाड़ के दूरस्थ गांव लगातार सुविधाविहीन होते जा रहे हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी इसका बड़ा कारण है। राज्य बनने के 18 साल बाद भी सरकारें पहाड़ में बुनियादी मानी जानी वाली चिकित्सा सुविधा नहीं पहुंचा सकी है। अस्पताल खोले गए मगर डॉक्टर विहीन। गांवों में खोले गए प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र महज नाम के हैं। दूर गांव में यदि कोई बीमार पड़ जाए तो उसे डोली पर लादकर पैदल सड़क तक लाना मजबूरी है। जिला मुख्यालय पहुंचने पर ट्रामा सेंटर और विशेषज्ञ चिकित्सकों का अभाव मरीज एवं तीमारदार दोनों को लाचार बना देता है। इतना ही नहीं पर्वतीय जिलों से जब मरीज हल्द्वानी व रुद्रपुर के लिए रेफर किए जाते हैं तो यहां तक पहुंचने में ही घंटों का सफर बीमारी या दुर्घटना को जानलेवा बना देता है। ऐसे में साल दर साल गांवों का खाली होना सरकार की काहिली को बयां करने के लिए काफी है। सरकारें बेफिक्र हैं इसलिए लोग अपनों के बेहतर स्वास्थ्य के खातिर गांव ही छोडऩे में भलाई समझते हैं। ताकि बड़े शहरों में भले सरकारी अस्पताल उन्हें समय पर बेहतर उपचार न दे पाएं, लेकिन निजी अस्पताल तक तो वो पहुंच सकें।
सीमांत पिथौरागढ़ में डॉक्टरों के 40 फीसद पद खाली
पिथौरागढ़ : पहाड़ में कमजोर स्वास्थ सेवाएं पलायन का सबसे बड़ा कारण साबित हो रही हैं। कुल पलायन में 22 फीसद पलायन स्वास्थ सुविधाओं की कमी के चलते ही हो रहा है। गांव तो दूर जिला मुख्यालय तक में लोगों को चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। डॉक्टरों को पहाड़ चढ़ाने के सरकारी दावे पिछले 18 वर्षों में खोखले साबित हुए हैं। पांच लाख की आबादी वाले सीमांत जिले में चिकित्सकों के 40 फीसद से अधिक पद खाली हैं। इनमें विशेषज्ञ चिकित्सकों की संख्या सबसे ज्यादा है। चिकित्सा व्यवस्था का हाल इसी से जाना जा सकता है जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जिला चिकित्सालय में हृदय रोग विशेषज्ञ, चर्म रोग विशेषज्ञ, ईएनटी सर्जन का पद खाली पड़ा हुआ है। इनसे संबंधित बीमारियों के उपचार के लिए 220 किलोमीटर दूर हल्द्वानी से पहले कोई चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। महिला चिकित्सालय में रेडियोलॉजिस्ट का पद तीन वर्षों से खाली पड़ा हुआ है। पड़ोसी जनपद चंपावत से सप्ताह में एक दिन रेडियोलॉजिस्ट बुलाए जा रहे हैं। जिन्हें एक दिन में 150 से अधिक जांचें करनी पड़ रही हैं। जिला चिकित्सालय में बना आइसीयू स्टाफ की कमी के चलते उद्घाटन के एक वर्ष बाद भी शुरू नहीं हो सका है। जिले में 88 उपकेंद्रों के भवन आज तक नहीं बन सके हैं। इनका संचालन किराए के जर्जर हाल भवनों में हो रहा है।
एक बेड पर चार मरीज
महिला चिकित्सालय की स्थिति बेहद खराब है। कागजों में इस अस्पताल की क्षमता 62 बेड की है, लेकिन जगह की कमी के चलते 42 बेड का ही संचालन हो रहा है। नवजात बच्चों के उपचार के लिए मात्र चार बेड स्वीकृत हैं, जिन पर 15 बच्चे तक भर्ती किए जा रहे हैं। इससे अधिक बच्चे आ जाने पर बच्चों को रेफर करना चिकित्सकों की मजबूरी है।
जिले में चिकित्सकों की स्थिति
चिकित्सालय स्वीकृत पद रिक्त पद
1.जिला चिकित्सालय 34 12
2. महिला चिकित्सालय 08 02
3. विशेषज्ञ चिकित्सक 17 12
4. इग्यारदेवी 08 01
5. गंगोलीहाट 20 10
6. मूनाकोट 12 01
7. कनालीछीना 15 04
8.धारचूला 22 07
9. मुनस्यारी 19 13
़10.डीडीहाट 17 09
11. बेरीनाग 14 08
एक दशक में पूरा नहीं हो सका बेस चिकित्सालय
पिथौरागढ़: बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का सपना देखते हुए एक दशक पूर्व बेस चिकित्सालय का खाका खींचा गया था, पहले इसके लिए जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर मोस्टामानू में जगह चयनित की गई थी। दूरी अधिक होने पर सवाल उठे तो नगर के समीप लिन्ठयुड़ा में इसका निर्माण शुरू कराया गया, लेकिन एक दशक बीत जाने के बाद भी बेस चिकित्सालय धरातल में नहीं उतर सका है।
चिकित्सकों की कमी बड़ी समस्या
मीना गंगोला, विधायक गंगोलीहाट ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी बड़ी समस्या है, पलायन के कारणों में एक यह भी शामिल है। प्रदेश सरकार पहाड़ में चिकित्सकों को भेज रही है, हाल के वर्षो में स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी को दूर करने के प्रयास चल रहे हैं।
स्वास्थ्य की दिशा में कोई कार्य नहीं हुअा
हरीश धामी, विधायक, धारचूला ने कहा कि प्रदेश सरकार ने चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के लिए कोई कार्य नहीं किया। जिला चिकित्सालय में कांग्रेस ने तीन फिजीशियन तैनात किए थे, वर्तमान में दो ही कार्यरत हैं। हृदय रोग विशेषज्ञ, ईएनटी सर्जन, चर्म रोग विशेषज्ञ पदों पर तैनाती के लिए सरकार की ओर से कोई पहल नहीं हो रही है। विधानसभा सत्र में इस समस्या को प्रमुखता से उठाया जाएगा।
सीएचसी, पीएचसी व एपीएचसी सिर्फ नाम के
चम्पावत : जनपद में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें इसके लिए सरकार ने ग्रामीणों क्षेत्रों में सीएचसी, पीएचसी, एपीएचसी व उपकेंद्र की सुविधा दी है मगर इन स्थानों में डॉक्टरों, कर्मचारियों व दवाईयों की कमी के चलते लोगों को इन सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह भवन केवल मरीजों का मुंह चिढ़ा रहे हैं। मरीज जैसे तैसे जिला अस्पताल पहुंचते हैं तो वह भी रेफर सेंटर बन कर रह गया है। नतीजा स्वास्थ्य विभाग की दम तोड़ती यह सुविधाएं मरीजों को बेमौत मरने पर मजबूर कर रही है। यही वजह है कि ग्रामीण बेहतर स्वास्थ्य के लिए लगातर गांवों को छोड़कर शहरों की ओर रूख कर रहे हैं।
आंकड़ों पर गौर करें तो स्वास्थ्य विभाग के पास जिला अस्पताल के अलावा दो सीएचसी, एक पीएचसी, सात एपीएचसी, दस एलौपेथिक केंद्र, एक संयुक्त चिकित्सालय, 19 आयुर्वेदिक अस्पताल, पांच होम्योपैथिक अस्पताल, एक टीवी क्लीनिक ओर 68 उपकेंद्र हैं। इसके अलावा टनकपुर व लोहाघाट में ट्रॉमा सेंटर है। बावजूद इसके यह जनपदवासियों का दुर्भाग्य है कि इतना सबकुछ होने के बाद भी यहां भरपूर संख्या में डॉक्टर, फार्मासिस्ट व नर्सिंग स्टाफ नहीं है। दवा व आधुनिक उपकरणों का अभाव यहां कोढ़ में खाज बन जाता है।
आज तक चालू नहीं हो पाया ट्रॉमा सेंटर
सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर टनकपुर व लोहाघाट में ट्रॉमा सेंटर का भवन बनाकर तो खड़ा कर दिया है, लेकिन आज तक वहां पर कर्मचारियों के पदों का सृजन नहीं हो सका। जिस कारण मरीजों को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।
दूरस्थ अस्पतालों की स्थिति दयनीय
जनपद के पीएचसी बाराकोट में मात्र एक डॉक्टर हैं। बाकी उच्च शिक्षा के लिए गए हैं। एपीएचसी पाटी की हालत जरूर बेहतर है। एपीएचसी चौड़ामेहता, मंच, पुल्ला, भिंगाराड़ा, तामली व एसएडी देवीधुरा, खेतीखान, रेगडू, ईजड़ा, चौमेल, चल्थी, स्वाला, सिप्टी, धौन, टांड में तैनात कुछ डॉक्टरों ने विभाग ने अन्य अस्पतालों में अटैच कर दिया तो कुछ उच्च शिक्षा के लिए चले गए और जो बचे वह अस्पताल जाना ही नहीं चाहते। इस कारण ग्रामीण गांवों से पलायन कर शहरों में रहने लगे।
जिला अस्पताल में नहीं स्त्री रोग विशेषज्ञ
अस्पताल में लंबे समय से वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ, न्यूरोसर्जन, कॉर्डियोलॉजिस्ट, चर्म रोग विशेषज्ञ, नेत्र सर्जन आदि प्रमुख पद रिक्त पड़े हुए हैं। जिस मरीजों को इनका उपचार कराने के लिए बाहर हल्द्वानी, रुद्रपुर की दौड़ लगानी पड़ रही है।
स्वास्थ्य सुविधाओं पर एक नजर
पद स्वीकृत कार्यरत रिक्त
डॉक्टर 103 45 58
विशेषज्ञ डॉक्टर 49 14 35
फार्मासिस्ट 59 55 4
एएनएम 80 55 25
स्टॉफ नर्स 30 21 9
अस्पताल बने रेफरल सेंटर, गांवों में छाने लगी वीरानी
अल्मोड़ा : छह लाख से अधिक आबादी वाले अल्मोड़ा जिला मुख्यालय में तीन अस्पताल हैं। जिला अस्पताल, महिला अस्पताल और बेस चिकित्सालय में विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी है। जिस कारण दूरदराज से आने वाले रोगियों को यहां से अक्सर हल्द्वानी और दिल्ली जैसे बड़े महानगरों के लिए रेफर कर दिया जाता है। बेहतर उपचार न मिलने के कारण अब यहां के लोगों का विश्वास भी स्वास्थ्य सेवाओं से उठने लगा है। बच्चों, बुजुर्गों और वृद्धजनों के लिए बेहतर स्वास्थ्य की कोई सेवाएं न होने के कारण यहां यहां के युवा अपने परिजनों को सुविधाजनक स्थानों पर रखना बेहतर समझ रहे हैं। जिस कारण गांव लगातार वीरान होते जा रहे हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण पिछले दस सालों में जिले के 647 गांवों से करीब 16207 लोग यहां से पलायन कर सुविधाजनक स्थानों पर शिफ्ट हो गए हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों का है सबसे बुरा हाल
पलायन की सबसे अधिक समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। यहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए यहां करीब 39 एलोपैथिक अस्पतालों के अलावा करीब 36 अन्य छोटे बड़े अस्पताल हैं, लेकिन अधिकांश अस्पतालों में या तो चिकित्सक नहीं हैं या फिर वहां जरूरी संसाधनों का टोटा है। ऐसे में रोगियों को रेफर करना इन अस्पतालों की नियति बन गई है। जिले में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 34 पद स्वीकृत हैं। जिसके सापेक्ष जिला अस्पताल में चार, महिला चिकित्सालय में चार, बेस चिकित्सालय में 13 और रानीखेत के नागरिक चिकित्सालय में विशेषज्ञ चिकित्सकों के आठ पद खाली पड़े हुए हैं।
हमने शुरू कराया था मेडिकल कॉलेज का निर्माण
मनोज तिवारी, पूर्व विधायक, अल्मोड़ा ने बताया कि हमने मेडिकल कालेज का निर्माण शुरू किया था, लेकिन वर्तमान सरकार इसे संचालित करने में नाकाम साबित हो रहा है। जिस कारण अब ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन की समस्या लगातार बढ़ रही है।
जिले में अस्पतालों की संख्या
जिले में चिकित्सालय संख्या
राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय 39
अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 20
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 07
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 09
जिला चिकित्सालय 01
महिला चिकित्सालय 01
बेस चिकित्सालय 01
रानीखेत चिकित्सालय 01
बेहतर स्वास्थ्य के लिए छोड़ रहे पितरों की थात
बागेश्वर : जिला अस्पताल से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को डाक्टरों का इंतजार है। सरकारें और जनप्रतिनिधि हर बार स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त करने का दावा पेश करते हैं। बावजूद इसके सुविधाओं और डाक्टरों की तैनाती करने में पूरी तरह विफल रही हैं। जिला अस्पताल के हाल बेहाल हैं। यहां मुख्य चिकित्सा अधीक्षक का पद स्वीकृत हैं लेकिन लंबे समय से कुर्सी खाली। इसके अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बैजनाथ, कपकोट और कांडा में तमाम डॉक्टरों के पद रिक्त चल रहे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, राजकीय एलोपैथिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों कमी से बीमार लोग जूझ रहे हैं। जिला अस्पताल रेफर सेंटर की भूमिका निभा रहा है।
गांवों की स्वास्थ्य सेवाएं भगवान भरोसे
धारीडोबा में महिला चिकित्सक नहीं है। काफलीगैर में डाक्टर की तैनाती नहीं हो सकी है। यहां संविदा पर तैनात डाक्टर पीजी करने चले गए हैं। जखेड़ा में संविदा पर कार्यरत डॉक्टर पीजी करने चले गए हैं। बदियाकोट में संविदा पर तैनात डाक्टर अनुपस्थित चल रही हैं। अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र शामा में संविदा पर तैनात डाक्टर भी अनुपस्थित हैं। लोहारखेत अस्पताल डाक्टर विहीन चल रहा है। छानी में तैनात एक डाक्टर पीजी करने गए हैं।
बागेश्वर में अस्पतालों की संख्या
जिला अस्पताल-1
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र-2
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र-8
अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र-7
राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय-14
उपकेंद्र-89
मुख्य केंद्र-11
एनएनएम सेंटर-100
बागेश्वर में डाक्टरों की स्थिति
जिले में डाक्टर-104, 27 रिक्त
नियमित-51, संविदा-11, दंत शल्यक-7
नियमित-6 अनुपस्थित, संविदा-5 अनुपस्थित, पीजी करने गए-6
एएनएम-100, रिक्त-3
चीफ फार्मासिस्ट-4 सृजित-1 रिक्त
फार्मासिस्ट-35 सृजित-6 रिक्त
स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने की कोशिश
चंदन राम दास, विधायक ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाया जा रहा है। डाक्टरों के पद भरने के प्रयास हो रहे हैं। जिला अस्पताल में सुविधा बढ़ाई जा रही हैं। आइसीयू और अन्य सुविधाएं भी मरीजों को दी जा रही हैं।
क्या कहते हैं पूर्व विधायक
ललित फर्स्वाण, पूर्व विधायक ने कहा कि हमने सीएससी कांडा बनाई और डाक्टर तैनात किए। कपकोट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पीपीपी मोड में संचालित किया और बेहतर सुविधाएं मरीजों को मिली। पीएससी पोङ्क्षथग अस्पताल भवन बनाया लेकिन अभी तक चालू नहीं हो सका है। वर्तमान में कपकोट में डाक्टर नहीं हैं। नामतीचेटाबगड़ में भवन शोपीस बना है।
स्वास्थ्य सुविधाएं को तरसा पहाड़, मैदान में भी दिक्कतें
हल्द्वानी : मानव विकास सूचकांक में भले ही नैनीताल जिला स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन में सबसे आगे हो, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर मैदानी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल ही हैं। जिले के आधे पर्वतीय क्षेत्र में आज भी मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए डोली का सहारा लेना पड़ता है। उन विकासखंडों में स्थापित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में महज औपचारिकता भर के लिए डॉक्टर कार्यरत हैं। फिर भी 88 डॉक्टरों की कमी है। लेडी मेडिकल ऑफिसर न होने से सबसे अधिक दिक्कत डिलीवरी को लेकर महिलाओं को झेलनी पड़ती है। इन क्षेत्रों में एक भी स्पेशलिस्ट नहीं हैं। पहाड़ों में छोड़ दें, मैदानी क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों में भी एक भी सुपरस्पेशलिस्ट नहीं हैं। वजह यह है कि मरीजों को आज भी पलायन करने को मजबूर होना पड़ रहा है।
बेस में फिजीशियन भी नहीं किया जा सका तैनात
बेस अस्पताल में एक साल से फिजीशियन नहीं है। पर्वतीय क्षेत्रों से भी मरीज इलाज की उम्मीद में बेस अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन यहां भी निराशा हाथ लगती है। यहां से मरीजों को एसटीएच रेफर कर दिया जाता है। इस समय चर्म रोग विशेषज्ञ भी नहीं है।
एसटीएच में सुपरस्पेशलिस्ट का अभाव
सड़क दुर्घटना से लेकर पेड़ से गिरने और अन्य घटनाओं में घायल मरीजों के उपचार के लिए न्यूरोसर्जन की जरूरत पड़ती है। मरीजों को एसटीएच भेजा दिया जाता है, लेकिन वहां पर भी न्यूरोसर्जन नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में गरीब मरीज आधे-अधूरे इलाज में ही घिसटते रह जाते हैं। आलम यह है कि सरकार अभी तक हृदय रोग विशेषज्ञ को भी तैनात नहीं कर सकी है।
डॉक्टरों की ये है स्थिति
अस्पताल स्वीकृत पद कार्यरत
60 278 190
बेहतर करने की हो रही कोश्िाश
डॉ. रश्मि पंत, प्रभारी सीएमओ, नैनीताल ने कहा कि स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। दुर्गम क्षेत्रों में डॉक्टर भेजे गए हैं। स्पेशेलिस्ट डॉक्टर कम है। जिला अस्पतालों में मरीजों को यह सुविधा मिल जाती है। सुपरस्पेशलिस्ट को नियुक्ति किए जाने की जरूरत है।