देहरादून 29 मार्च, 2019। स्वयंभू फाउडेशन की ओर से शुक्रवार को सुभाष रोड़ स्थित होटल में पत्रकार वार्ता का अयोजन किया गया।
पत्रकार वार्ता के दौरान फाउंडेशन का नेतृत्व करते हुए श्री पीके महान्ति ने बताया कि गढ़वाल के पहाड़ों में वसंत ऋतु के आगमन का जश्न मनाने के लिए देश के विभिन्न भागों से सोलह चित्रकार 4 से 11 अप्रैल, 2019 तक चमोली जिले के कर्णप्रयाग तहसील के रतूरा गाँव में इकट्ठा होंगे।
उन्होंने बताया कि गढ़वाल की घाटियों में यह समय क्युराल (गढ़वाल केचेरी-ब्लॉसम) के खिलने का समय भी है। श्री पीके महान्ति ने कहा कि शिविर का आयोजन स्वयंभू सोशल फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है जो कि एक लाभ रहित चैरिटेबल (धर्मार्थ) संगठन है।
श्री पीके महान्ति, जो एक सेवानिवृत्त आईएएस ऑफिसर हैं, और अब स्वयं ग्राम रतूरा में ही निवास कर रहे हैं। इस शिविर के लिए श्री महान्ति को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, उत्तराखंड सरकार के संस्कृति विभाग, इंडियन ऑयल और ओएनजीसी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा समर्थन मिला है और शिविर का प्रीमियर प्रायोजक आदित्य बिड़ला ग्रुप है।
श्री पीके महान्ति ने पत्रकारों को बताया कि देश के विभिन्न राज्यों जैसे ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, दिल्ली और उत्तराखंड के चित्रकार ‘घाटियों और पहाड़ों’, ‘क्युराल और बुरांश’, ‘चीढ़ और बाँज’ जैसे अन्य विषयों को अपने कैनवस में उतारने का प्रयास करेंगे। गाँव में उन्हें प्रकृति के करीब रहने वाले सीधे-सादे लोगों से बातचीत व उनके जीवन शैली को समझने का अवसर भी मिलेगा।
इसके पश्चात् शिविर में चित्रकारों द्वारा बनाये गये चित्रों को दिल्ली, मुंबई और देहरादून में प्रदर्शिनी के द्वारा बिक्री के लिए रखा जाएगा। जिससे जमा की गई धनराशि को फाउंडेशन के अन्य धर्मार्थ गतिविधियों के लिए पुनः प्रयोग किया जाएगा।
फाउंडेशन के श्री पीके महान्ति ने बताया कि नव गठित नॉन-फॉर प्रॉफिट चैरिटेबल संस्था, स्वयंभू सोशल फाउंडेशन दिल्ली, का उद्देश्य ग्रामीण जीवन को कला, संस्कृति और संगीत जैसे रचनात्मक माध्यम से जोड़ना है। फाउंडेशन का उद्देश्य कला और शिल्प, पर्यावरण-पर्यटन, आदि के माध्यम से गाँववासियों के लिए आजीविका पैदा करना है, ताकि अधिक से अधिक लोग अपनी जड़ों की ओर वापस लौट सकें।
फाउंडेशन ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा को उपलब्ध कराने की योजना भी बना रही हैं, ताकि वरिष्ठ नागरिक सेवानिवृत्ति के बाद अपने पैतृक गांवों में लौट सकें।