देहरादून, राज्य ब्यूरो। गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के लिए जरूरी है कि उसकी सहायक नदियां साफ-सुथरी रहें। नमामि गंगे परियोजना में इस पर भी फोकस किया गया है। इसी क्रम में देहरादून की दो नदियों रिस्पना और बिंदाल को नमामि गंगे में शामिल तो किया गया है, लेकिन अभी तक इन नदियों के किनारे उगी बस्तियों के घरों से निकलने वाले गंदे पानी को टैप करने की मुहिम शुरू नहीं हो पाई है।
आलम ये है कि गंदे नालों में तब्दील हुई ये दोनों नदियां आज भी रोजाना करीब साढ़े छह करोड़ लीटर सीवर ढोने का जरिया बनी हुई हैं। और तो और, अन्य प्रकार की गंदगी भी इन नदियों के जरिये गंगा में समा रही है। पानी की गुणवत्ता पर शोध करने वाली संस्था स्पेक्स के अध्ययन पर ही गौर करें तो रिस्पना और बिंदाल के पानी के इस्तेमाल से जिंदगी खतरे में पड़ सकती है।
कभी दून की शान थी रिस्पना-बिंदाल
एक दौर में रिस्पना और बिंदाल नदियां देहरादून के सौंदर्य में चार चांद लगाती थीं। रिस्पना अपने उद्गम स्थल शिखर फॉल से मोथरोवाला तक 12 किमी और बिंदाल नदी मालसी से शुरू होकर 13 किमी का सफर तय करती है। रिस्पना मोथरोवाला के नजदीक सुसवा में मिलती हैं। फिर सुसवा नदी सौंग में मिल जाती है। सौंग गंगा की सहायक नदी है।
दून शहर से होकर गुजरने वाली रिस्पना व बिंदाल का पानी कभी लोग इस्तेमाल करते थे। बदलते वक्त के साथ इन नदियों के किनारे बड़े पैमाने पर बस्तियां उग आई। आज अपना अस्तित्व तलाश रहीं ये नदियां दून शहर की गंदगी ढोने का जरिया बन गई हैं। आलम ये है कि करीब साढ़े छह करोड़ लीटर सीवर के साथ ही अन्य प्रकार की गंदगी, औद्योगिक प्रतिष्ठानों से निकलने वाला हानिकारक पानी इन्हीं नदियों में समा रहा है।
बेहद खराब है पानी
सोसाइटी फॉर पॉल्यूशन एंड कंजर्वेशन साइंटिस्ट (स्पेक्स) के शोध में बात सामने आई है कि रिस्पना और बिंदाल के पानी में बेहद खतरनाक तत्व हैं। संस्था के अध्यक्ष डॉ. बृजमोहन शर्मा बताते हैं कि दोनों नदियों के पानी की स्थिति बेहद खराब है।
इनके पानी मे क्रोमियन, जिंक, आयरन, शीशा, मैगनीज, ग्रीस, तेल की इतनी अधिक मात्रा है कि इनके पानी का इस्तेमाल करने से जिंदगी खतरे में पड़ सकती है।
साफ-सुथरा करने का है संकल्प
मरणासन्न स्थिति में पहुंच रिस्पना व बिंदाल को नवजीवन देने के साथ ही इन्हें गंदगीमुक्त करने के उद्देश्य से इन्हें नमामि गंगे परियोजना में शामिल किया गया है। मंशा ये है कि इन नदियों के जरिये सीवर समेत अन्य दूषित पानी गंगा में न जाने पाए। बावजूद इसके, इन्हें लेकर वह गंभीरता नजर नहीं आती, जिसकी दरकार है।
घरों के नाले होने हैं टैप
परियोजना के तहत प्रथम चरण में रिस्पना और बिंदाल नदियों के किनारे स्थित बस्तियों के साथ ही आसपास के घरों से निकलने वाले गंदे पानी के नालों को टैप किया जाना है। इन नालों को सीवर लाइन से जोड़ने की योजना है, लेकिन इसके लिए ठोस पहल का इंतजार है। स्थिति ये है कि अभी टेंडर तक नहीं हो पाए हैं। सूरतेहाल, सिस्टम की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि, नमामि गंगे परियोजना से जुड़े एक आला अधिकारी ने बताया कि टेंडर के लिए कार्यवाही चल रही है। उम्मीद है कि इसी हफ्ते टेंडर हो जाएंगे।
गंगा को ही बना दिया डंपिंग जोन
विश्वनाथ नगरी उत्तरकाशी के बाद भागीरथी (गंगा) आगे बढ़ी तो मातली, डुंडा, धरासू होते हुए चिन्यालीसौड़ पहुंचती है। जगह-जगह कूड़े के ढेर और चिन्यालीसौड़ के निकट झील में फैला कचरा गंगा स्वच्छता और निर्मलता की पोल खोल देता है। गंगा की स्वच्छता पर न तो प्रशासन का ध्यान और न स्थानीय निकाय व पंचायत का। बस ये गंगा है, जो कूड़ा-कचरा ढोती जा रही है।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर मातली कस्बा पड़ता है। यहां कूड़ा निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। कूड़ा सीधे गंगा में डाला जा रहा है। यहां खनन माफिया ने भी गंगा को छलनी कर डाला है। पर, इन खनन माफिया को प्रशासन का पूरा संरक्षण है। प्रशासन ने यहां गंगा से 20 मीटर की दूरी पर क्रेशर की अनुमति दी है।
मातली के बाद डुंडा ब्लाक मुख्यालय के बाजार का सारा कचरा सैणी के निकट गंगा में गिर रहा है। यहां कूड़ा निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कस्बे की गंदगी भी नालियों के जरिये गंगा में गिर रही है। देवीधार और नालूपाणी के बीच तो कुछ माह पहले उत्तरकाशी नगर पालिका ने 40 ट्रक कूड़ा-कचरा गंगा में उड़ेला था। कुछ कूड़े कचरे का ढेर अभी भी गंगा के किनारे लगा हुआ है।
प्रमुख यात्रा पड़ाव धरासू में भी कूड़ा निस्तारण को लेकर कोई व्यवस्था नहीं है। जैविक-अजैविक कूड़ा डंङ्क्षपग जोन यहां भी गंगा को ही बना दिया गया है। धरासू के निकट चिन्यालीसौड़ नगर पालिका के पास न तो डंपिंग जोन है और न प्लास्टिक कूड़ा प्रबंधन के लिए काम्पेक्टर मशीन। नगर पालिका नगर के कूड़े को धरासू पावर हाउस के सामने गंगा में डाल रही है। साथ ही यहां कूड़े को जलाया भी जा रहा है।
चिन्यालीसौड़ के निकट टिहरी झील में भी कूड़े-कचरे का ढेर लगा हुआ है। पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष शूरवीर ङ्क्षसह रांगड़ कहते हैं कि गंगा स्वच्छता की तो बदहाल स्थिति है। गंगोत्री, भटवाड़ी, उत्तरकाशी, डुंडा से जो भी कूड़ा-कचरा तथा मरे हुए पशु आदि आते हैं, इस झील में आकर थम जाते हैं। इससे गंगा जहां प्रदूषित हो रही हैं, वहीं आसपास के इलाके में बदब के साथ ही मक्खी-मच्छरों का डर बना रहता है।
बदरीनाथ धाम में अलकनंदा में जा रहा सीवर का पानी
बदरीनाथ धाम में सीवरेज एक बड़ी समस्या बनी हुई है। यहां सीवर का पानी सीधे अलकनंदा नदी में जा रहा है। जिससे अलकनंदा दूषित हो रही है और श्रद्धालु भी आहत हैं। बदरीनाथ धाम में बस अड्डे के पास, राष्ट्रीय राजमार्ग, जीएमओयू कार्यालय के पास जगह-जगह सीवर का पानी सड़कों पर बह रहा है। स्थानीय लोगों के साथ ही धाम को आने वाले श्रद्धालुओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
बदरीनाथ धाम की यात्रा इन दिनों जोरों पर है। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु भगवान बदरीविशाल के दर्शनों के लिए आ रहे हंै। मगर यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सड़कों पर बह रहा सीवर का पानी और बदबू से दो चार होना पड़ रहा है। सीवर का पानी सीधे नदी में प्रवाहित हो रहा है।
मामले में न तो एनजीटी और न ही गंगा प्रदूषण इकाई, जल संस्थान, नगर पंचायत और प्रशासन सजग दिख रहा है। इसको लेकर स्थानीय लोगों में भारी रोष है। स्थानीय निवासी जयदीप मेहता का कहना है बदरीनाथ धाम में यह समस्या यात्रा शुरू होने के दौरान ही शुरू हो गई थी। तब भी समस्या को प्रशासन के सामने रखा था, लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया। बताया कि सीवर का पानी सीधे नदी में जा रहा है।
मुरारी कन्नी का कहना है कि देश-विदेश के यात्री भी सीवर के पानी और बदबू से परेशान हैं। मामले में उपजिलाधिकारी जोशीमठ वैभव गुप्ता का कहना है धाम में सीवर लाइन को ठीक करने के लिए मशीन पहुंच चुकी है। जल संस्थान को शीघ्र सीवर लाइन ठीक करने का निर्देश दिए गए हैं।
जल संस्थान के अवर अभियंता संदीप आर्य का कहना है कि सीवर लाइन में पॉलीथिन सहित अन्य कूड़ा जाने पर यह समस्या आ रही है। इनको ठीक करने का काम चल रहा है।
सीवर प्लांट अधूरे, ठेकेदार पर 35 लाख जुर्माना
मिशन क्लीन गंगा प्रोजेक्ट के तहत गंगा में डाली जा रही गंदगी को रोकने के लिए बनाया जाने वाला सीवर प्लांट समय सीमा बीतने के बाद भी पूरा नहीं हो सका है। इस सीवर प्रोजेक्ट को अप्रैल तक पूरा हो जाना चाहिए था। नतीजतन सारी गंदगी सीधे अलकनंदा और पिंडर नदी में गिर रही है।
पेयजल निगम ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ठेकेदार पर 35 लाख रुपये जुर्माना किया है। यदि 31 जुलाई तक भी काम पूरा न हुआ तो पचास लाख रुपये का हर्जाना भरा होगा।
उत्तराखंड पेयजल निगम ने 5.42 करोड़ की लागत से नगर क्षेत्र कर्णप्रयाग के पांच गंदे नालों को सीधे अलकनंदा और पिंडर नदी में गिरने से रोकने के लिए 5.42 करोड़ रुपये की एक योजना बनाई थी। इस योजना के तहत इन गंदे नालों को टैप कर सीवर प्लांट से जोडऩा था, जिसके लिए 600 मीटर पाइप लाइन भी बिछाई जानी थी।
कार्यदायी संस्था पेयजल निगम ने पिछले साल इसका जिम्मा एक ठेकेदार को सौंपकर अप्रैल 2019 तक का समय दिया। बारिश के दौरान अलकनंदा और पिंडर नदी का जलस्तर बढ़ गया, जिसके चलते निर्माण कार्य गति न पकड़ सका।
तीन प्लांटों का अस्सी फीसद काम पूरा
विभागीय अधिकारियों की मानें तो नगर के पांच स्थानों सुभाषनगर, कर्णमंदिर परिसर, मुख्य बाजार, गांधीनगर व संगम तट सीवर प्लांट बनाए जाने हैं। इनमें से एक प्लांट को नाले से जोड़ निर्माण की जांच संबंधी प्रक्रिया पूरी की जा रही है, जबकि चार प्लांट में से तीन पर पाइप लाइन व प्लांट कार्य 80 प्रतिशत से अधिक पूरा हो चुका है।
संगम तट पर प्लांट का निर्माण एक धर्मशाला के कक्ष का नाले के ऊपर बने होने से प्रारंभ नहीं हो सका है। कार्य में लगातार हो रहे विलंब से संबंधित ठेकेदार पर 35 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
एनजीटी दल ने सीवर प्लांट से जांच को नमूने लिए
जनपद चमोली के मुख्य धार्मिक स्थलों व प्रयाग तटों पर नमामि गंगे के तहत जारी सीवर प्लांट निर्माण कार्यों का एनजीटी (राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण) निरीक्षण किया। टीम ने प्लांट से पानी के नमूने भी लिए। निगम के अभियंताओं को सही तरीके से काम करने के निर्देश दिए। इस दौरान पर्यावरण से जुडे अधिकारी यूसी ध्यानी, डॉ. काजमी, अनिता राय व रुड़की के विशेषज्ञ इंजीनियर, अधिशासी अधिकारी नगर पालिका आरएस राणा आदि मौजूद थे।
एक प्लांट ने शुरू किया कार्य
उत्तराखंड पेयजल निगम, चमोली के अवर अभियंता दीपक वत्स के अनुसार, कर्णप्रयाग में कर्णमंदिर परिसर में स्थापित सीवर प्लांट ने कार्य प्रारंभ कर दिया है और शेष सीवर प्लांट के निर्माण के लिए ठेकेदार को 31 जुलाई तक का समय दिया गया है। यदि तय समय सीमा के भीतर प्लांट व पाइप बिछाने का कार्य नहीं होता तो 50 लाख रुपये का जुर्माना भी वसूला जाएगा। फिलहाल समय पर कार्य न होने पर 35 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया है।