देहरादून- क्या यह दिवस सिर्फ लड़का और लड़की को ही मनाना चाहिए? अपितु यह दिवस आप किसी के साथ भी मना सकते है। आओ आज हम सभी यह संकल्प करे कि हम सब ये प्रेमदिवस अपने माता,पिता,भाई व बहन के साथ मनाएंगे। इस दिवस को एक सच्चा प्रेम दिवस मनाकर अविस्मरणीय बनाएंगे।
जिन माता पिता के कारण आज हमारा वजूद है उनको श्रद्धा के पुष्पो से समानित करें, क्योंकि उन्होंने हमें जन्म नही दिया होता तो हम कहाँ भटक रहे होते। उनके उपकार हमपर बहुत है इस बात को हमे कभी नही भूलना चाहिये।
14फरवरी को मनाया जाने वाला यह दिन अलग-अलग विश्वास के साथ मनाया जाता है। यह माना जाता है की वेलेंटाइन डे मूल रूप से संत वेलेंटाइन के नाम पर रखा गया है । रोम मे तीसरी शताब्दी मे सम्राट क्लॉडियस का शासन था।उस के अनुसार विवाह करने से पुरूषो की शक्ति व बुद्धि कम होती हैं ।उस ने आज्ञा जारी की कोई भी सैनिक या अधिकारी विवाह नही करेगा ।संत वेलेंटाइन ने इस आदेश का विरोध किया ।उन्ही के आह्वान पर अनेक सैनिको व अधिकारिओं ने विवाह किए।आखिर सम्राट क्लॉडियस ने 14फ़रवरी 269 को संत वेलेंटाइन को फासी पर लटका दिया।मां हमारे जीवन का ऐसा डेबिट कार्ड है जहां हम हर सुख दुख जमा कर सकते है ओर पिता वो क्रेडिट कार्ड है जहाँ बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की क्षमता रखता है।
भूलों सभी को मगर माँ बाप को कभी नही भूलना।
भगवान का सबसे खूबसूरत उपहार है माता पिता का स्वरूप।मां करुणा,प्रेम व ममता की मूर्ति है, मां हमारी बगिया की मालिन है जिसने हमे अपने खून से सींचकर बढ़ा किया है। जिसने हमे अपने वजूद को मिटाकर,हमे जीवन जीने का आधार दिया है। पिता जो हमारे घर की नींव है जो सर्दी गर्मी सब सहते हुए हमें अपनी छत्र छाया में ढके रहता है।
मेरे तीर्थ चारो धाम मात-पिता और गुरुधाम।
जिसने अपने माँ बाप की सेवा कर ली उसे मंदिर,मस्जिद,चर्च ओर गुरद्वारे जाने की जरूरत नही है। इसीलिये कहते हैं:-
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय पिता।
जब भी में अक्स देखु तो तेरा ही वजूद नज़र आता है।
मुझ में तू ओर तुझ में मैं नज़र आता है।।
यह संदेश जन जन तक पहुचना है कि 14 फरवरी को सिर्फ और सिर्फ मात्र पित्र प्रेमदिवस के रूप में मनाया जाय।
नीना अरोरा (समाजसेवी)
12, साईबाबा एन्क्लेव
देहरखास, देहरादून।