लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमारी सरकार पहले दिन से किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। हमने सत्ता में आते ही 86 लाख किसानों का एक लाख 35 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था। इस कोरोना काल में भी चल रहे किसानों के आंदोलन पर सवाल उठाते हुए सीएम योगी ने कहा कि यह आंदोलन केवल जिद के आधार पर चलाया जा रहा है। जनता स्वयं समझ रही है कि किसान नेता किसके राजनीतिक टूल्स बने हुए हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि किसान नेता किसका मोहरा बने हुए हैं? क्या ये सचमुच किसान आंदोलन है। जब देश के एक-एक नागरिक को बचाने की मुहिम चल रही हो तो कुछ लोग धरने पर हैं। आखिर ये किसके मोहरे हैं? वे देश को बदनाम करने वाली ताकतों का मोहरा बने हुए हैं। उन्हें न तो किसान सम्मान निधि योजना से कोई मतलब है, न कृषि सिंचाई योजना से और न ही किसानों के लिए चलाई जा रही ऐसी ही अन्य कल्याणकारी योजनाओं से। यह आंदोलन केवल जिद के आधार पर चलाया जा रहा है। जनता स्वयं समझ रही है कि किसान नेता किसके राजनीतिक टूल्स बने हुए हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इस कोरोना काल में भी हमने दुग्ध उत्पादक किसानों को कहीं पर भी दूध बेचने की खुली छूट दी। इसके अलावा ऐसे किसानों के लिए एक योजना भी तैयार है। कोरोना संकट के कारण उसके अमल में विलंब हो रहा है। हमारी योजना है कि सरकारी डेरी भी चले और सहकारी भी।
आजमगढ़ और सैफई के दौरे के पीछे राजनीतिक कारण नहीं : मंडलों के दौरों को दौरान आजमगढ़ और सैफई जाने पर कहा कि मंडल का दौरा करते समय एक जिले के साथ पड़ोस के जिलों में भी गया। कानपुर मंडल का दौरा किया तो सैफई भी गया, वहां शासकीय अस्पताल है और वहां कोरोना संक्रमितों के इलाज का निरीक्षण करने गया था। आजमगढ़ और सैफई के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के पास संभवत: समय नहीं रहता, वे व्यस्त रहते हैं। तो मैंने वहां की जनता से कहा कि मेरे पास आप लोगों के लिए पर्याप्त समय है इसलिए कोरोना काल में उनका हाल लेने चला गया। इसके पीछे कोई राजनीतिक कारण नहीं देखना चाहिए।
संविधान में सभी के काम पारिभाषित : यह पूछे जाने पर कि कई उच्च न्यायालयों ने हाल में ऐसे निर्देश दिए हैं जिनका जमीन पर अनुपालन मुश्किल है? सीएम योगी ने न्यायपालिका पर कोई टिप्पणी न करते हुए कहा कि भारतीय संविधान में सभी के काम पारिभाषित हैं। दायित्व अलग हैं। सरकार के अपने दायित्व हैं, न्यायपालिका के अपने। सबकी अपनी लक्ष्मण रेखा है। कोर्ट के फैसलों पर मुझे कोई टिप्पणी नहीं करनी। हां, इतना अवश्य है कि हमारे पास बेहतर विकल्प थे और हमें न्याय मिला।