रायपुर। । छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद किसानों के हित में धड़ाधड़ फैसले लिए गए। कांग्रेस कर्ज माफी से लेकर धान का समर्थन मूल्य 25 सौ करने और लोहंडीगुड़ा में टाटा के लिए अधिग्रहीत भूमि किसानों को लौटाने आदि निर्णयों को अपने दो महीने की सरकार की बड़ी उपलब्धि बता रही है। नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी यानी किसानों से जुड़े मुद्दे को ही सरकार ने अपनी प्राथमिकता में रखा है। यह सबकुछ होने के बावजूद किसान संतुष्ट नहीं हैं। भीतर ही भीतर आग सुलग रही है और लोकसभा चुनाव के दौरान किसानों का असंतोष सड़क पर आ सकता है।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करने का दबाव
किसान अब स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करने का दबाव बनाने लगे हैं। अगर किसान नाराज हुए तो कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। भाजपा भी यह जानती है। इसीलिए भाजपा किसानों के मुद्दे को हवा देने में लगी हुई है। सत्ता में रहते हुए जिन मांगों पर भाजपा ध्यान नहीं देती थी उन्हीं मांगों को पूरा करने के लिए कांग्रेस पर दबाव डाल रही है। किसान कह रहे हैं कि कर्ज माफी हुई ही नहीं। किसी भी किसान के बैंक खाते से ऋण का रिकार्ड काटा नहीं गया है। बैंक एनओसी नहीं दे रहे हैं तो कर्ज माफी कैसी।
मुद्दे को हवा दे रही है भाजपा
भाजपा ने इस मुद्दे को पहले से ही लपका हुआ है। भाजयुमो बैंकों के सामने प्रदर्शन कर रही है। कर्ज माफ करने के बाद भी सरकार को किसानों की ओर से श्रेय नहीं लेने दिया जा रहा है। ऐसे में मंत्री को सदन में बताना पड़ा कि कर्ज माफी के लिए बजट रखा है। विनियोग विधेयक पास होते ही बैंकों के खाते में पैसा चला जाएगा और किसानों को एनओसी मिल जाएगी। हालांकि कर्ज माफी को अब किसान कोई बड़ी बात नहीं मानते। किसान कह रहे हैं कि कर्ज माफी की भीख न दो, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करो जिसका वादा विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस करती रही है।
क्या कहते हैं किसान नेता?
स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक, फसल का दाम मिले तो किसी और मदद की जरूरत नहीं होगी। छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संघ के संयोजक राजकुमार गुप्त कहते हैं कि पिछली भाजपा सरकार ने केंद्र को धान की लागत की जो रिपोर्ट भेजी थी उसमें बताया था कि एक क्विंटल धान पर किसान की लागत 24 सौ आती है। ऐसे में 25 सौ देकर सरकार कोई अहसान नहीं कर रही है।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के मुताबिक इस 24 सौ लागत का डेढ़ गुना यानी 36 सौ रुपया मूल्य होना चाहिए। वह दे दो बस, और कुछ नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि हम बजट सत्र के खत्म होने का इंतजार कर रहे, ताकि यह इल्जाम न लगे कि सरकार को वक्त नहीं दिया। बजट सत्र में हमारी समस्याओं का कारगर हल न मिला तो सड़क की लड़ाई का विकल्प खुला है।
बोनस पर चुप क्यों है सरकार
किसान संगठनों का कहना है कि कांग्रेस ने भाजपा के शासन के दौरान जो दो साल का धान का बोनस बकाया था उसे देने का वादा किया था। सरकार बनी तो कर्ज माफी और नरवा गरूवा का शोर मचाने लगे लेकिन बोनस की बात भूल गए। इस मामले में सरकार की चुप्पी खल रही है। इसी तरह चना उत्पादक किसानों के बोनस का भी मुद्दा है। चना उत्पादकों को बोनस देने के लिए पिछली सरकार ने बजट जारी कर दिया था। इसके बाद आचार संहिता लग गई और मामला अटक गया। जो पैसे जारी हो चुके हैं उसे भी देने का नाम सरकार नहीं ले रही है।
किसानों की लड़ाई आगे लेकर जाएगी भाजपा
भाजपा किसानों के मुद्दे को लपकने के लिए लालायित है। छत्तीसगढ़ में किसान अहम फैक्टर हैं और लोकसभा का चुनाव सर पर है। ऐसे में किसानों के हर मुद्दे पर भाजपा मुखर दिख रही है तो उसकी वजह है। खाद, बीज, पानी, धान का पेमेंट, कर्ज माफी सभी मुद्दे भाजपा उठा रही है। चुनाव में भाजपा किसानों का फायदा न उठा ले इसे लेकर कांग्रेस भी सतर्क है।