उत्तरकाशी
हमारे भारतवर्ष में अनेक विभिन्न समस्याये है, जिनसे सरकारे व आमजन प्रत्येक दिन रूबरू होते रहते है परन्तु एक सबसे बड़ी व गहन समस्या जो पल दर पल बढ़ती ही जा रही है और हमारी सरकार व भारतवासी उसे नजर अन्दाज कर रहे हैं वह समस्या है हमारे पर्यावरण की क्षति व लगातार पिचलते हमारे हिमालय व ग्लेशियर, जिनके लगातार तेजी से पिघलने का परिणाम आने वाले 30-40 वर्षों में हमे बहुत बड़े जल संकट एवं मानवीय जीवन जीने के संकट का सामान करने के लिए देखना पड़ेगा परन्तु तब हमारे हाथ में बचने व बचाने के लिए कुछ नहीं रहेगा, इससे भी बडी दुःखद बात यह कि इतना गम्भीर विषय व समस्या सम्मुख होने पर भी न तो हमारी सरकार और न ही हमारी जनता इस विषय पर ध्यान देने को या कुछ बोलने को तैयार नहीं। निः सन्देह धरती का तापमान साल दर साल बढ़ रहा है. जिससे मौसम परिवर्तन में बहुत बड़ा प्रभाव देखने को मिल रहा है, जिसके कारण जल संकट, ग्लेशियरों पर संकट बढ़ गया है। म० महोदय जी
मेरे द्वारा जिस में गंगा-यमुना, ग्लेशियरों के अस्तित्व को समाप्ति से बचाने के भय से जो आवाज 23 वर्ष पूर्व उठाई गई थी वो भय आज सच होते सामने दिख रहा है जिसके लिए मेरे द्वारा 23 वर्षो से लगातार अपनी आवाज राज्य, केन्द्र सरकारों सहित भारतवर्ष की जनता से भी आग्रह किया जा रहा है कि जिस गंगा-यमुना को हम मा का दर्जा देते है, जिस हिमालय को हम भोलेनाथ का घर मानते है आज उसी माँ गंगा-यमुना और हिमालय के साथ हम जाने-अनजाने में स्वयं से ही उन्हें समाप्ति की ओर अग्रसर कर रहे है, जिस प्रकार से आज विकास के नाम पर हिमालय ग्लेशियर व पहाड़ो को विनाश की भेंट चबाया जा रहा है विकास के लिए हमारे इन हिमालय नुमी पहाड़ों को विस्फोटो से तोड़ा जा रहा है, बडी-बडी मशीनरियों से छंदन किया जा रहा है, पेड़-पौधों के स्थान पर सीमेंट का लेपन पूरे पहाड़ो में किया जा रहा है, और हिमालय-ग्लेशियरों पर बैरोकटोक मानवीय अवाजाही का लगातार बढ़ाना हिमालय की तलहटी तक सीमेन्ट-कंकरीटो के महलों का निर्माण आदि अनेक ऐसी मानवजनीत कार्य है जो आज हमारे पर्यावरण असंतुलन एंव हिमालय- ग्लेशियरों के पिघलने के मुख्य कारक है। विकास होना आवश्यक है परन्तु विनाश की तर्ज पर नहीं, आज सबसे मुख्य समस्या यह है कि हमारी सरकारों में बैठे बड़े-बड़े नीतीकारक बड़े-बड़े महलो में बैठकर जिस प्रकार से मैदानी और पहाड़ी (हिमालय) क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों को एक समान रखकर नीति बनाते है।
उसी का ही परिणाम है कि हमारे इन कच्चे पहाड़ो को विस्फोटको से विभिन्न टुकडो में तोड़कर छोड़ दिया जा रहा है, और पहाडो को मुस्करालन, आपया की भेट चढाया जा रहा है।
मा० महोदय जी इस प्रकृति को इन्सान ने नहीं अपितु प्रकृति में इन्सान को बनाया है। प्रकृति से अधिक छेडछाड करने का परिणाम हमने कई बार सहन किया है, हमे प्रकृति के सौन्दर्य को बिगाड़ने के बजाय उसके सौन्दर्य को संरक्षित करने पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है जिसके लिए हमें बड़े-बड़े बांधों का निर्माण, पहाड़ों पर सुरंगे, पहाड़ों पर ट्रेन पहुंचाने, आवश्यकता से अधिक सड़क चौड़ीकरण, ग्लेशियरो हिमालय में मानवीय आवाजाही आदि जैसे प्रकृति विरोधी कार्यो पर शीघ्राति शीघ्र विराम लगाने की आवश्यकता है अन्यथा हमे जल संकट का सामना करने के लिए 30-40 वर्षो का भी इन्तजार नहीं करना पड़ेगा, जिस माँ गंगा की आचमनी मात्र से हम मानवजाति स्वंय को पवित्र मानते है अपने पाप उसमें घुलते है उस माँ गंगा का गंगोत्री ग्लेशियर लगातार प्रतिवर्ष 70-00 मी० पिचल रहा है और आने वाले 30-40 वर्षों में माँ गंगा का अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा फिर हम न तो स्वयं के लिए और न ही अपनी आने वाली पीडी के लिए माँ गांगा का जल बचा पायेंगे, और भारत की जनता जो माँ गंगा के जल पर ही पूर्ण निर्भर है, अपनी कृषि के लिए वह भी अकाल के ग्रास में चले जायेगे।
आज से 23 वर्ष पूर्व मेरे द्वारा गंगोत्री धाम से ही माँ गंगा के अविरल आधार गंगोत्री ग्लेशियर के अस्तित्व संरक्षण की मुहिम मां गंगा के आशिर्वाद से ही प्रारम्भ की गई जिसमे मैंने सर्व प्रथम इन्ही सब राथ्यों को जनता व सरकारों के सम्मुख रखा था कि सर्व प्रथम
1. गंगोत्री से आगे गंगोत्री ग्लेशियर व अन्य सभी ग्लेशियरों में मानवीय आवाजाही पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगा दिया जाय, ।
2. हिमालय क्षेत्रों में बहुमंजिला व सीमेंट कंकरीट के भवनो के निर्माण में पूर्ण प्रतिबन्ध हो
3. गंगोत्री से 5 कि०मी० पूर्व ही वाहनो को रोक दिया जाय।
4. बढ़े- बड़े बांधों के निर्माण में पूर्ण प्रतिबन्ध हो आदि अनेक मुददो को लेकर अकेले ही आन्दोलन प्रारम्भ किया पर आज जब हिमालय संरक्षण की बाते सुनाई देती है तो लगता है कि जैसे 23 वर्षों की तपस्या का फल मिल रहा है आज लद्वाख के हमारे देश के प्रसिद्ध इंजिनियर श्री सोनम बागचुक जी द्वारा अपनी प्रदेश की मुहिम में हिमालय, ग्लेशियर संरक्षण की बात को भी बहुत प्रबलता से रखा जा रहा है, जिसके लिए मै श्री सोनम वांगचुक जी का पूर्ण समर्थन करती हूँ और अपने देश की भारत सरकार व देश वासियों से आग्रह करती हूँ कि हम सभी को सबसे पहले अपने हिमालय ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए आगे आकर बात करनी होगी तभी हमारा जीवन भी संरक्षित रह सकता है।
अतः मा० महोदय जी मेरा आपसे क्रमबद्ध निवेदन पूर्वक आग्रह है कि कृपया आप हिमालय ग्लेशियरों की स्थिती को मध्येनजर रखते हुए हिमालय, पहाड़ों की सही प्रकार से नीति निर्धारित करवाने की कृपा करने का कष्ट करें जिससे यह हिमालय ग्लेशियर संरक्षित रहे।
शांति ठाकुर (ग्लेशियर लेडी)
संरक्षिका