स्कंद पुराण के केदारखण्ड में वर्णन है कि वारणावत पर्वत की तलहटी में इसी स्थान पर भगवान परशुराम जी ने दुष्कर तप किया था । उत्तरकाशी में काशीपति भगवान विश्वनाथ जी के परम भक्त / शिष्य भगवान श्री परशुराम जी का प्राचीन मंदिर स्थित है।भगवान परशुराम का बचपन का नाम राम था ,अपने गुरु भगवान शिव से परशु प्राप्त होने के कारण ही इनका नाम परशुराम हुआ।उत्तराखण्ड का यह एक मात्र मन्दिर है। उनके रौद्र स्वभाव के सौम्य हो जाने के कारण ही उत्तरकाशी को सौम्यकाशी भी कहा जाता है। मन्दिर के गर्भगृह में स्थित मूर्ति 11-12वी शताब्दी की है एवं एक ही शिलाखंड पर भगवान श्री विष्णु के अंशावतारों को उत्कीर्ण किया गया है। गर्भगृह में विराजमान मूर्ति मूर्तिकला का अद्वितीय नमूना है। मन्दिर में स्थित शिलापट्ट पर अंकित संवत 1899 से ज्ञात होता है कि इस वर्ष इसका जीर्णोद्धार हुआ। मन्दिर के मुख्य द्वार पर स्थित ताम्रलेख पर संवत 1742 उत्कीर्ण है।
अक्षय तृतीया का हिन्दू धर्म में विशेष महात्तम है।
आज *अक्षय तृतीया श्री परशुराम जयंती का पर्व* वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण बहुत ही सादगी के साथ सम्पन्न किया गया।
इस पावन पर मन्दिर में विश्व शान्ति, वैश्विक महामारी कोरोना की समाप्ति तथा भारतवर्ष के साथ ही सम्पूर्ण विश्व की सुख- समृध्दि के लिये हवन भी किया गया। तदोपरान्त मन्दिर में नवीन ध्वजारोहण किया गया।
इस अवसर पर बुद्धि सिंह पंवार, सुभाष चन्द्र नौटियाल, शैलेन्द्र नौटियाल, महेंद्रपाल सिंह सजवाण , अनूप नौटियाल, अनिल बहुगुणा, नवीन नौटियाल, गणेश नौटियाल,संदीप भट्ट आदि उपस्थित रहे।