नई दिल्लीः अयोध्या में राम मंदिर को लेकर शुक्रवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी का दिन तय किया है. अब अयोध्या भूमि विवाद मामले को आगे ले जाने के लिए तीन सदस्यीय एक पीठ का गठन किया जाएगा. कोर्ट के आज के आदेश के बाद तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है. लेकिन जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने सबसे चौंकाने वाला बयान दिया है. जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम रहे फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि राम भगवान केवल हिंदुओं के नहीं है, वह तो पूरी दुनिया के है. फारूक अब्दुल्ला ने इस मामले को कोर्ट में ले जाने पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि इस मामले पर चर्चा होनी चाहिए और इसका समाधान ढूंढा जाना चाहिए.
फारूक कहा, ‘इस मुद्दे को लोगों द्वारा ही आपसी सहमति से सुलझा लिया जाता, इसे कोर्ट ले जाने की क्या जरूरत है? मुझे पूरा भरोसा है कि बातचीत के जरिए इसे सुलझाया जा सकता है. भगवान राम पूरी दुनिया के हैं, केवल हिंदुओं के नहीं है.’
राम मंदिर पर ऐतराज जताने वालों के लिए फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘भगवान राम से किसी को बैर नहीं होना चाहिए, कोशिश करनी चाहिए सुलझाने की और बनाने की. जिस दिन ये हो जाएगा मैं भी एक पत्थर लगाने के लिए जाऊंगा. जल्दी समाधान होना चाहिए.’
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उसके द्वारा गठित पीठ राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना विवाद मामले की सुनवाई की तारीख तय करने के लिए 10 जनवरी को आदेश देगी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस एस के कौल की पीठ ने कहा, ‘‘एक उपयुक्त पीठ मामले की सुनवाई की तारीख तय करने के लिए 10 जनवरी को आगे के आदेश देगी.’’
सुनवाई के लिए मामला सामने आते ही प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला है और इस पर आदेश पारित किया. अलग-अलग पक्षों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ताओं हरीश साल्वे और राजीव धवन को अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं मिला.मामले की सुनवाई 30 सेकेंड भी नहीं चली.
इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्ष 2010 के आदेश के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर हुई हैं. उच्च न्यायालय ने इस विवाद में दायर चार दीवानी वाद पर अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बंटवारा करने का आदेश दिया था.
इससे पहले 29 अक्तूबर को न्यायालय ने इस मामले को ‘‘उपयुक्त पीठ’’ के समक्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह के लिये सूचीबद्ध किया था. बाद में अखिल भारत हिन्दू महासभा (एबीएचएम) ने एक अर्जी दायर कर सुनवाई की तारीख पहले करने का अनुरोध किया था परंतु न्यायालय ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था. न्यायालय ने कहा था कि 29 अक्टूबर को ही इस मामले की सुनवाई के बारे में आदेश पारित किया जा चुका है. अखिल भारत हिन्दू महासभा (एबीएचएम) इस मामले में मूल वादियों में से एक एम सिद्दीक के वारिसों द्वारा दायर अपील में एक प्रतिवादी है.
इससे पहले, 27 सितंबर, 2018 को तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गयी टिप्पणी पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास नये सिरे से विचार के लिये भेजने से इनकार कर दिया था. इस फैसले में टिप्पणी की गयी थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था. विभिन्न हिन्दू संगठन विवादित स्थल पर राम मंदिर का यथाशीघ्र निर्माण करने के लिये अध्यादेश लाने की मांग कर रहे हैं.
शीर्ष अदालत में शुक्रवार की सुनवाई महत्वपूर्ण मानी जा रही थी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को ही कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के मामले में न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अध्यादेश लाने के बारे में निर्णय का सवाल उठेगा. मोदी की यह टिप्पणी आरएसएस समेत हिंदुत्व संगठनों की तेज होती उस मांग के बीच आई थी कि मंदिर के जल्द से जल्द निर्माण के लिए एक अध्यादेश लाया जाए.
प्रधानमंत्री मोदी ने कई टीवी चैनलों द्वारा प्रसारित किए गए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘न्यायिक प्रक्रिया को अपना काम करने दें. इसे राजनीतिक दृष्टि से ना तौलें. न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने दें. न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार के तौर पर हमारी जो भी जिम्मेदारी होगी उसके लिए हम हरसंभव कोशिश करने को तैयार हैं.’’