चेन्नै : केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा दांव चलते हुए सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए सरकारी नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। एक ओर जहां सरकार के तमाम सहयोगियों ने इसे एक ऐतिहासिक फैसला बताया है, वहीं विपक्षी दल डीएमके ने इसे पिछड़े और अन्य वर्गों लोगों के खिलाफ एक ‘विनाशकारी खेल’ बताते हुए इसकी आलोचना की है।
विपक्षी दल डीएमके के अध्यक्ष एमके स्टालिन ने आरोप लगाया कि आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए केंद्र ने आरक्षण देने का यह कदम उठाया है। स्टालिन ने यह बयान देते हुए तमिलनाडु में सत्तारूढ़ एआईएडीएमके से तमिलनाडु विधानसभा में इस मामले पर केंद्र के खिलाफ एक प्रस्ताव लाने की मांग की।
स्टालिन ने विधानसभा में उठाया मुद्दा
विधानसभा में विपक्ष के नेता स्टालिन ने मंगलवार को सदन के पटल पर इस मुद्दे को उठाया और तमिलनाडु में दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता की ओर से किए गए 69 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था के बारे में सरकार को याद दिलाया। वहीं राज्य सरकार ने इस बारे में कहा कि केंद्रीय कैबिनेट का कदम केवल एक ‘नीतिगत निर्णय’ है और इस संबंध में केंद्र की तरफ से कोई अधिसूचना नहीं मिली है।
सरकार ने सदन में पेश किया संशोधन विधेयक
बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण के दायरे में देश के ईसाई और मुस्लिम गरीबों समेत सभी धर्मों के लोग आएंगे। इसकी जानकारी सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत ने लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक को पेश करते हुए दी। इस प्रस्ताव को मंजूरी देने वाले 124वें संविधान संशोधन विधेयक को पेश करते हुए गहलोत ने कहा कि इसके तहत सभी वर्ग के लोग आएंगे। उन्होंने कहा कि इस आरक्षण का आधार सामाजिक या शैक्षणिक नहीं है बल्कि आर्थिक है।